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नज़्म
निसार मैं तेरी गलियों के
निसार मैं तिरी गलियों के ऐ वतन कि जहाँ
चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
नज़्म क्या है
शाइरी की दो सिंफ़ें हैं नज़्म-ओ-ग़ज़ल
उर्दू में इन की शोहरत है बच्चो अटल
हाफ़िज़ कर्नाटकी
ग़ज़ल
अख़्तर आज़ाद
नज़्म
आज़ादी का गीत
आज हम सब शाद हैं अपना वतन आज़ाद है
हम हैं बुलबुल जिस चमन के वो चमन आज़ाद है
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
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नज़्म
एक लड़का
दयार-ए-शर्क़ की आबादियों के ऊँचे टीलों पर
कभी आमों के बाग़ों में कभी खेतों की मेंडों पर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
क़ौमी तराना
ऐ मिरे हिन्दोस्ताँ जन्नत-निशाँ
बह रही हैं तेरे सीने पर वो शीतल नद्दियाँ
अल्ताफ़ मशहदी
ग़ज़ल
मुझे मा'लूम है बस्ती में ग़ुर्बत कम नहीं होती
दिलों में फिर भी लोगों के मोहब्बत कम नहीं होती
अंशुल नभ
हास्य शायरी
ये पिल पड़ती हैं हम पर जब भी हम दफ़्तर से आते हैं
हलाकू-ख़ाँ से या चंगेज़-ख़ाँ से इन के नाते हैं
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
बादा-ए-नीम-रस
किस क़यामत का तबस्सुम है तिरे होंटों पर
इस्तिआरों में भटकते हैं ख़यालात मिरे